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स्वप्रेरणा से संज्ञान: भारतीय न्याय व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण अवधारणा

भारत में अदालतें जनहित की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कई बार वे तब भी दखल देती हैं जब कोई औपचारिक याचिका दायर नहीं की गई होती—इसे स्वप्रेरणा से संज्ञान (Suo Moto Cognizance) कहते हैं। इसके तहत अदालतें स्वयं किसी मुद्दे पर कार्रवाई शुरू कर सकती हैं, खासकर तब जब मामला मौलिक अधिकारों या लोगों की सुरक्षा से जुड़ा हो।

स्वप्रेरणा से संज्ञान क्या है?

Suo Moto लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है—“अपने ही बल पर”। भारतीय न्याय व्यवस्था में इसका मतलब है कि अदालत बिना किसी व्यक्ति या संस्था के पास आए, खुद ही कानूनी कार्यवाही शुरू कर सकती है। संविधान में यह शक्ति दी गई है—

  • अनुच्छेद 32 – सुप्रीम कोर्ट को मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए।
  • अनुच्छेद 226 – हाई कोर्ट को समान शक्तियां।

अदालतें यह शक्ति कब और क्यों इस्तेमाल करती हैं?

आमतौर पर अदालतें तब स्वप्रेरणा से संज्ञान लेती हैं जब—

  • कोई गंभीर सार्वजनिक समस्या हो, जिसे तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता हो।
  • प्रभावित लोग इतने कमजोर, गरीब या अनजान हों कि अदालत तक न पहुंच पाएं।
  • सरकारी या सार्वजनिक संस्थाओं को जवाबदेह ठहराना जरूरी हो।

निष्कर्ष

स्वप्रेरणा से संज्ञान एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो अदालतों को जनहित में कार्रवाई करने की शक्ति प्रदान करती है। यह शक्ति संविधान में दी गई है और इसका उपयोग अदालतें तब करती हैं जब कोई गंभीर सार्वजनिक समस्या हो या प्रभावित लोग अदालत तक न पहुंच पाएं।

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